ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019(Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019)
Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019
ट्रांसजेंडर समुदाय द्वारा कड़ी आलोचना करने के बाद, केंद्र सरकार ने ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम’, 2019 के अंतर्गत तैयार किये गए नये मसौदा नियमों में पहचान प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने वाले ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए चिकित्सा परीक्षण की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है।
26 नवंबर, 2019 को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 2019 को पारित किया गया।[2] एक्ट व्यक्तियों को अपने जेंडर की पहचान स्वयं करने की अनुमति देता है, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के आइडेंटिफिकेशन का प्रावधान करता है और उन्हें कुछ अधिकार और लाभ देने की बात करता है। एक्ट की अधिसूचना के बाद सरकार ने पब्लिक फीडबैक के लिए 16 अप्रैल, 2020 को एक्ट के ड्राफ्ट नियमों को सर्कुलेट किया। ड्राफ्ट नियम उस तरीके, प्रकार और प्रक्रिया को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए व्यक्तियों को ट्रांसजेंडर के रूप में मान्यता दी जा सकती है।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम ड्राफ्ट, 2020 का अवलोकन:
- सभी शैक्षणिक संस्थानों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के किसी भी उत्पीड़न अथवा भेदभाव के मामले की सुनवाई करने के लिए एक समिति गठित की जायेगी।
- ‘उपयुक्त सरकार’, किसी भी सरकारी अथवा निजी संस्थान या किसी प्रतिष्ठान में होने वाले भेदभाव पर रोक लगाने के लिए समुचित कदम उठायेगी।
- राज्य, अधिनियम की धारा 18 के तहत आरोपित ‘व्यक्तियों के शीघ्र अभियोजन’ के लिए उत्तरदायी होंगे। अधिनियम की धारा 18 में ट्रांसजेंडर समुदाय के विरुद्ध अपराधों तथा दंड का प्रावधान किया गया है।
- ट्रांसजेंडर समुदाय के विरुद्ध अपराध में जुर्माने के साथ छह महीने से दो साल तक की कारावास हो सकती है।
- राज्य सरकारें, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों के मामलों की निगरानी करने तथा अधिनियम की धारा 18 को लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट और DGP के तहत एक ट्रांसजेंडर संरक्षण सेल का गठन करेंगी।
https://youtu.be/eeQn2ynSLo0
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019:
ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषाः अधिनियम के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री), इंटरसेक्स भिन्नताओं और जेंडर क्वीर आते हैं। इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर, हिंजड़ा, भी शामिल हैं।
इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्तियों की परिभाषा में ऐसे लोग शामिल हैं जो जन्म के समय अपनी मुख्य यौन विशेषताओं, बाहरी जननांगों, क्रोमोसम्स या हारमोन्स में पुरुष या महिला शरीर के आदर्श मानकों से भिन्नता का प्रदर्शन करते हैं।
भेदभाव पर प्रतिबंध: अधिनियम, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है, जिसके अंतर्गत शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुंच और उसका उपभोग, कहीं आने-जाने का अधिकार, किसी प्रॉपर्टी में निवास करने, उसे किराये पर लेने, स्वामित्व हासिल करने सार्वजनिक या निजी पद को ग्रहण करने का अवसर के अधिकार से वंचित करने पर छह महीने से दो साल तक की कारावास हो सकती है।
निवास का अधिकार: प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार में रहने और उसमें शामिल होने का अधिकार है। अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति का निकट परिवार उसकी देखभाल करने में अक्षम है तो उस व्यक्ति को न्यायालय के आदेश के बाद पुनर्वास केंद्र में भेजा जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
यह कानून, केंद्र और राज्य सरकारों को सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी अधिमान्यता तथा उनके कल्याण के लिए शुरू किए गए सक्रिय उपायों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का परिणाम था।
राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (National Council for Transgender persons– NCT)
यह अधिनियम राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है, जिसमे निम्नलिखित सदस्य होंगे:
- केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री (अध्यक्ष),
- सामाजिक न्याय राज्य मंत्री (सह अध्यक्ष),
- सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव, और
- स्वास्थ्य, गृह मामलों, आवास, मानव संसाधन विकास से संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि।
- अन्य सदस्यों में नीति आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधि शामिल होंगे। राज्य सरकारों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त परिषद में ट्रांसजेंडर समुदाय के पांच सदस्य और गैर सरकारी संगठनों के पांच विशेषज्ञ भी शामिल होंगे।
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