राजकोषीय परिषद की आवश्यकता(Do we need a fiscal council?)
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राजकोषीय परिषद क्या है?
राजकोषीय परिषदें स्वतंत्र लोक संस्थाएं होती हैं, जिनका उद्देश्य विभिन्न कार्यों, जैसे, वित्तीय योजनाओं और उनके प्रदर्शन का सार्वजनिक आंकलन, बजटीय पूर्वानुमानों तथा समष्टि आर्थिक नीतियों (Macro economic policies) के प्रावधानों के मूल्यांकन आदि, के माध्यम से दीर्घकालिक लोक वित्त प्रतिबद्धताओं को मजबूत करना है।
वर्तमान में राजकोषीय परिषदें, विश्व में कई उभरती हुई तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं सहित 50 से अधिक देशों में संस्थागत राजकोषीय प्रणाली (Institutional fiscal system)का हिस्सा हैं।
राजकोषीय परिषद का गठन तथा कार्यप्रणाली (14वें वित्त आयोग द्वारा की गयी अनुशंसाएं)
14वें वित्त आयोग ने ‘राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम’ (Fiscal Responsibility and Budget Management Act-FRBM Act) में संशोधन करके एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद की स्थापना करने हेतु एक नया उपबंध जोड़ने की सिफारिश की थी। राजकोषीय परिषद का कार्य, ‘वितीय प्रस्तावों का पूर्व-अनुमानित मूल्यांकन करना’ तथा इन प्रस्तावों की ‘वितीय नीतियों तथा नियमों से अनुरूपता’ सुनिश्चित करना होगा।
राजकोषीय परिषद की नियुक्ति संसद द्वारा की जानी चाहिए तथा इसकी रिपोर्ट सीधे संसद में प्रस्तुत की जानी चाहिए, और इसके अतिरिक्त इसका अपना बजट होना चाहिए।
राजकोषीय परिषद के कार्यों में बजट प्रस्तावों के राजकोषीय निहितार्थों (Implications) का पूर्व आंकलन करना सम्मिलित होगा, जिसके अंतर्गत वह बजटीय पूर्वानुमानों का यथार्थ मूल्यांकन तथा विभिन्न बजटीय प्रस्तावों की लागत और इनकी राजकोषीय नियमों के साथ अनुरूपता का आंकलन करेगी।
पारित होने के पश्चात बजट का मूल्यांकन तथा निगरानी का कार्य ‘भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller & Auditor General of India-CAG)’ का है।
भारत में राजकोषीय परिषद की आवश्यकता
विभाजन योग्य सकल राजस्व में विभिन्न उपकरों (cess) तथा अधिभारों (Surcharges) का अनुपात असंगत रूप से बढ़ता जा रहा है। अंतरण प्रक्रिया (Transfer Process) की मूल भावना के साथ चतुर वित्तीय उपायों अथवा परम्पराओं का सहारा लेकर छेड़छाड़ रोकने को सुनिश्चित करने हेतु एक मजबूत तंत्र होना चाहिए।
वित्त आयोग और जीएसटी परिषद के बीच समन्वय की आवश्यकता है। जीएसटी परिषद को वित्त आयोग के कार्यो के संबंध में कोई जानकारी नहीं है, तथा वित्त आयोग भी जीएसटी परिषद के कार्यों से परिचित नहीं हैं।
इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 293 (3) के अंतर्गत राज्य सरकार की देयताओं हेतु, ऋणों के सन्दर्भ में संवैधानिक नियंत्रण का प्रावधान है। किंतु, केंद्र सरकार पर इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है।
अतः, राजकोषीय नियमों को लागू करने तथा केंद्र सरकार के राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation)पर नजर रखने हेतु राजकोषीय परिषद जैसे वैकल्पिक संस्थागत तंत्र की आवश्यकता है।
COVID 19 महामारी के दौर में राजकोषीय परिषद् की प्रासंगिकता
सरकार के लिए घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने तथा आर्थिक बहाली सुनिश्चित करने हेतु अधिक ऋण प्राप्त करने तथा व्यय करने की आवश्यकता है।
परन्तु, इससे ऋण-भार में और अधिक वृद्धि होगी, जिससे मध्यावधि विकास संभावनाओं के लिए संकट उत्पन्न होगा। इस स्थिति को विभिन्न प्रमुख रेटिंग एजेंसियों द्वारा हाल के मूल्यांकनों में प्रमुखता से रेखांकित किया है।
राजकोषीय परिषद् पर विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें:
हाल के वर्षों में, भारत में दो विशेषज्ञ समितियों द्वारा इस प्रकार की संस्था के लिए सिफारिश की है।
वर्ष 2017 में, ‘वित्तीय नियमों की समीक्षा करने हेतु’ वित्त मंत्रालय द्वारा गठित ‘एन. के. सिंह कमेटी’ ने एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद की स्थापना करने के लिए सुझाव दिया, जिसका कार्य सरकार के लिए वित्तीय पूर्वानुमान प्रदान करना तथा अधिदेशित (Mandated) वित्तीय नियमों से विचलन कर सकने योग्य परिस्थितियों के बारे में सलाह देना होगा।
वर्ष 2018 में, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) द्वारा राजकोषीय आंकड़ों पर गठित की गयी ‘डी.के. श्रीवास्तव समिति’ ने भी सरकार के साथ विभिन्न स्तरों पर समन्वय करने हेतु एक राजकोषीय परिषद की स्थापना का भी सुझाव दिया, जिसका कार्य सभी सरकारी स्तरों पर सामंजस्यपूर्ण राजकोषीय आँकड़ों को उपलब्ध कराना तथा सार्वजनिक क्षेत्र की सकल ऋण आवश्यकताओं का वार्षिक आकंलन प्रदान करना होगा।
ये सिफारिशें 13वें तथा 14वें वित्त आयोगों द्वारा की गयी सिफारिशों के अनुरूप थीं। दोनों वित्त आयोगों की रिपोर्ट्स में सरकार द्वारा राजकोषीय नियमों के अनुपालन की समीक्षा करने तथा बजट प्रस्तावों के आकलन करने हेतु स्वतंत्र वित्तीय एजेंसियों की स्थापना की अनुशंसा की गयी है।
वित्त आयोग- रचना और कार्य
भारतीय वित्त आयोग की स्थापना १९५१ में की गयी थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारत के केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सम्बन्धों को पारिषित करना था।
वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष होता है वित्त आयोग का गठन एक संवैधानिक निकाय के रूप में अनुच्छेद 280 के अंतर्गत किया जाता है यह एक अर्ध न्यायिक संस्था होती है इसका गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है भारत में वित्त आयोग का गठन वित्त आयोग अधिनियम 1951 के अंतर्गत किया गया है 1993में भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग का गठन भी किया जाने लगा वित्त आयोग में एक अध्यक्ष तथा 4 सदस्य होते हैं सदस्यों में 2 सदस्य पूर्ण कालीन सदस्य जबकि 2 सदस्य अंशकालीन सदस्य होते हैं
२०१७ में नवीनतम वित्त आयोग एन के सिंह (भारतीय योजना आयोग के भूतपूर्व सदस्य) की अध्यक्षता में स्थापित किया गया था
उपकर क्या होते है?
उपकर एक प्रकार का कर है। इसे कर के साथ कर आधार पर हीं लगाया जाता है। उपकर को किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतू लगाया जाता है। भारत सरकार ने 2016-17 के बजट प्रस्तुति के दौरान 1 जून 2016 से सभी कर योग्य सेवाओं पर 0.5% की दर से कृषि कल्याण उपकर नमक उपकर लगाने की घोषणा की। इससे हुई प्राप्तियों का उपयोग विशिष्ट रूप से कृषि सुधार और किसान कल्याण से संबंधित कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए किया जाएगा। इसे राज्यों के साथ शेयर नहीं किया जाता है।
अधिभार क्या है? उदाहरण
जैसा कि नाम से पता चलता है, अधिभार अतिरिक्त शुल्क या कर है। 30% की कर दर पर 10% का अधिभार प्रभावी रूप से संयुक्त कर बोझ को 33% तक बढ़ा देता है। 1 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध कर योग्य वेतन अर्जित करने वाले व्यक्तियों के मामले में, कर देयता पर 10% का अधिभार लगाया जाता है।
उपकर एक कर या शुल्क की प्रकृति में हो सकता है लेकिन यह एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए लगाया जाता है, जैसा कि चार्जिंग कानून में पहचाना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 270 उपकर से संबंधित है। सेस टैक्स एक निर्धारित टैक्स है। दूसरी ओर, अधिभार संघ के प्रयोजनों के लिए लगाए गए कर पर एक कर है। एक अधिभार संविधान के अनुच्छेद 271 के तहत लगाया जाता है।
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