ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague)
ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague)
हाल ही में, चीन में ब्यूबोनिक प्लेग नामक बीमारी का एक संदिग्ध मामला सामने आया है। इसके बाद उत्तरी चीन के एक शहर बायानूर (Bayannor) में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है।
आंतरिक मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र के अधिकारियों ने प्लेग की रोकथाम और नियंत्रण के थर्ड लेवल की चेतावनी जारी कर दी है। स्थानीय अधिकारियों ने घोषणा की है, कि प्लेग फैलने के संभावित खतरे को देखते हुए चेतावनी-अवधि वर्ष 2020 के अंत तक जारी रहेगी।
प्लेग क्या होता है?
प्लेग एक ऐसी बीमारी है जो ‘यर्सिनिया पेस्टिस’ (Yersinia pestis) नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह बीमारी, जानवरों तथा मुख्य रूप से कृन्तकों (rodents) में पाई जाती है।
यह संक्रमित जानवरों तथा पिस्सुओं से मनुष्यों में संचारित होता है।
मध्यकाल (5वीं-15वीं शताब्दी) में, प्लेग को ‘काली मौत’ के रूप में भी जाना जाता था क्योंकि इससे यूरोप में लाखों लोगों की मृत्यु हो गयी थी।
प्लेग, तीन प्रकार का होता हैं:
ब्यूबोनिक प्लेग: यह व्यक्ति के लसीका तंत्र- lymphatic system (जो मनुष्य के प्रतिरक्षा तंत्र का एक भाग होता है) को संक्रमित करता है, जिससे लसीका पर्व (lymph nodes) में सूजन आ जाती है।
यदि इसका समय पर उपचार नहीं किया जाये तो, यह निमोनिया के सेप्टिकमिक प्लेग (Septicemic Plague) में परिवर्तित हो सकता है। इसके लक्षणों में बुखार, ठंड लगना, कमजोरी और सिरदर्द आदि सम्मिलित होते हैं।
न्यूमोनिक प्लेग (Pneumonic plague): WHO के अनुसार, यह प्लेग का सर्वाधिक संक्रामक प्रकार होता है’ तथा 24 से 72 घंटों के भीतर यह जानलेवा हो सकता है। यह बैक्टीरिया द्वारा फेफड़ों को संक्रमित करने पर होता है। मानव से मानव में फैलने वाला यह एकमात्र प्लेग है।
लक्षण: सीने में दर्द, बुखार तथा खांसी हैं। यह खांसी के माध्यम से तीव्रता से फैलता है।
सेप्टिकमिक प्लेग (Septicemic Plague): यह बैक्टीरिया द्वारा रक्त प्रवाह में प्रवेश करने से, तथा वहां अपनी संख्या में वृद्धि करने से होता है।
अनुपचारित छोड़ देने पर, न्यूमोनिक और ब्यूबोनिक प्लेग से सेप्टिकम प्लेग हो सकता है। सेप्टिकैमिक प्लेग से संक्रमित व्यक्ति की त्वचा काली पड़ने लगती है।
प्लेग का इलाज तथा नियंत्रण
प्लेग एक जानलेवा बीमारी है, परन्तु जल्दी पहचान होने पर एंटीबायोटिक्स से इसका इलाज किया जा सकता है। हालांकि, शीघ्र उपचार नही किये जाने पर, यह रोग गंभीर रूप धारण कर सकता है तथा मृत्यु का कारण बन सकता है।
इसके उपचार के लिए, कभी-कभी, केवल एंटीबायोटिक्स पर्याप्त नहीं होते हैं, तथा साथ में अंतःशिरा तरल पदार्थ (Intravenous Fluids) और अतिरिक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
चूंकि यह अत्यधिक संक्रामक बीमारी होती है, तथा न्यूमोनिक प्लेग से संक्रमित व्यक्तियों को अलग रखा जाता है।
- संक्रमित व्यक्ति के निकटवर्ती लोगों को भी निवारक उपाय के रूप में एंटीबायोटिक दवाओं की एक खुराक दी जाती है।
- प्लेग नियंत्रण हेतु अन्य निवारक उपायों के अंतर्गत कृंतक जीवों को कीट नियंत्रण के माध्यमों से नियंत्रित किया जाता है।
भारत में प्लेग:
ब्यूबोनिक प्लेग, भारत को भी बुरी तरह प्रभावित कर चुका है।
- प्लेग का पहला मामला तत्कालीन बंबई में 23 सितंबर 1896 को दर्ज किया गया था। यह वर्ष 1855 में चीन से उत्पन्न हुई तीसरी प्लेग महामारी का एक हिस्सा था।
- यह बीमारी भारत में व्यापारिक जहाजों के माध्यम से कलकत्ता, कराची, पंजाब और संयुक्त प्रांत के बंदरगाह शहरों में फ़ैल गयी थी।
- इस बीमारी के कारण भारत में लगभग 12 मिलियन से अधिक मौते हुई थी।
उस समय प्लेग की स्थिति विकराल हो चली थी, कि इसे नियंत्रित करने लिए बने ‘महामारी रोग अधिनियम’,1897 का मसौदा जल्दबाजी में तैयार किया गया। इस कानून में ‘खतरनाक महामारी को नियंत्रित करने हेतु विशेष उपाय करने तथा नियमों को निर्धारित करने’ का प्रावधान किया गया है।
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